MINA/MEENA RAJA
MINA/MEENA RAJA

Discover the RJASTHAN MINA / Meena community, one of India's oldest tribes, and explore their fascinating traditions, customs, and notable contributions to society throughout historyOF INDIA.

मीन - मीना - मीणा - मैणा मैना क्षत्रिय जनजाति का उदय, उत्तान, ह्नास और बिखराव काल अति दीर्घकालीन रहा है, परंतु वैदिक, पौराणिक व साहित्यिक स्रोतों के अतिरिक्त, ऐतिहासिक स्रोत ढूंढ पाना युगों - युगो से एक अबूझ पहेली रही है ! मध्ययुगीन प्रसिद्ध वीर गाता काव्यों में खासकर ‘पृथ्वीराज रासो’ व ‘‘हमीर रासो’ दो प्रमुख ऐतिहासिक काव्य है! इन दोनों काव्यों के अनेक ऐतिहासिक लेखों से मीणा जनजाति शाखाओं के शूरवीरों की शोर्यता - शूरवीरता और कर्तव्यनिष्ठा की पहचान होती है ! इन ऐतिहासिक प्रकरण एवं प्रमाणिक लेखो की भी, कालांतर में रियासतों में पले एवं अपने आश्रयदाताओं के अनुसार लिखने वाले इतिहासविद् व दरबारी राजकवियों के ऐतिहासिक लेख व उनके द्वारा रचित काव्य आदि में मीणा - मीना - मैना - मैणा जनजाति का क्षात्रत्व व इतिहास सिमट कर जातीय बारेठ, जागा बहीपोथी - पन्नों में ही ओझल होता अनुभव किया जाता हे!

मीना - मीन - मत्स्य व नाग प्रजाति की मीना - मीणा मैना मीणा शाखायें विभिन्न काल - समयान्तरो तथा विभिन्न देश देशान्तरों में, भिन्न - भिन्न शब्द संज्ञाओ से अभिहित रही हे! कालान्तर में मीना - मीन अर्थात ‘मत्स्य’ व ‘नाग’ प्रजाति शाखाएं

मत्स्य, मीणा, मीना , मैना, मैणा, मेन, मेहना, मियाॅंणा, भाया, भयात् , मेर , मेहर, मेरोट, मारण , मारन,मेद, मेंड,मांड, मेव आदि शब्द संज्ञाओ से अभिहित रही हे!

मीना - मीन - मत्स्य व नाग प्रजाति की मीना - मीणा - मेना मैना जनजाति की प्रमुख पहचान ‘मीन’ अर्थात ‘मत्स्य’ यानी ‘मछली’ व ‘नाग’ प्रतीक चिह्न युक्त ‘मुद्रा’ व ‘ध्वजा’ अर्थात ‘पताका’ धारण करना एवं धर्म में ‘नाग’ ओर ‘‘जानवरों’ से घिरे नन्दी - देव ‘रूद्र’ अर्थात ‘शिव’ अर्थात महादेव की उपासना करने वाले उपासकों के रूप में की जाती रही है! धार्मिक मर्यादा मापों में भी मीना - मीणा - मेना - मैना जनजाति ‘मीन’ , ‘मीनानाथ’ अर्थात ‘शिव’ ( महादेव ) की आराधनाओ में लीन तथा ‘शिव’ व ‘मीनभगवान्’ की उपासना करने वाली प्राचीन जनजातियों में से एक जनजाति है! जिसमें मीणा व मीना शब्द संज्ञा में भी काल्पनिक दीवार रची गई है मीणा इतिहास पर श्री रावत सारस्वतजी की अवधारणाएं निम्नानुसार है मीना - मैना - मीणा - मैणा आदि नामो से सुप्रसिद्ध मीणा जाति का पूर्वकालीन इतिहास उतने ही अंधकार में हैं जितना अन्य आदिवासी जातियों का है यह चर्चा करने से पहले की इस जाति के विषय में विभिन्न इतिहासकारों तथा नृवैज्ञानिकों की क्या धारणाएं है मीना ( मीणा) शब्द की व्युत्पत्ति चर्चा करना समीचीन होगा श्री रावत सारस्वतजी का आगे का लेख में जहां राजस्थान के विभिन्न भागों में उसे मीणा, मेणा, मैणा , नामो से पुकारा जाता है वही राजस्थान के बाहर यह ‘मीना’ कह कर पुकारी जाने जाति है मीणा जाति के अनेक सुपठित व्यक्तियों की यह धारणा है की इस जाति का संबंध भगवान के ‘मत्स्यावतार’ से है इन्हीं व्यक्तियों में सर्वाधिक उल्लेखनीय नाम है ‘श्री मुनि मगनसागर’ का जिन्होंने ‘मीन पुराण’ नामक स्वतंत्र पुराण की रचना करके यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है की मीणा जाति ‘मत्स्यावतार’ से ही सम्बन्ध रखती हे! मुनि जी ने ‘मीन’ क्षत्रियों की एक पौराणिक जाति की भी कल्पना की है मुनिजी ने ‘अभिज्ञान चिंतामणि कोष’, ‘शब्दस्तोम - महानिधि’ तथा ‘सिद्धांत कौमुदी’ आदि कोष व्याकरण के ग्रन्थों से ‘मीन’ शब्द की व्याख्या उध्दत करते हुए ‘मीन’ को दुष्टों का संहार करने वाली जाती बताया हे!” “ऐसी स्थिति में यदि मीणा का संबंध ‘मीन’ से मान भी लिया जाए तो मीणा की व्युत्पत्ति फिर भी पहेली ही बनी रहेगी लेकिन अन्य किसी पुष्ट प्रमाण के अभाव में इसी मान्यता पर आगे बढ़ने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है” यह भी एक ऐतिहासिक सत्यता ही है कि ‘मीना’, ‘मीणा’, ‘मैणा’, ‘मैना’ शब्द संख्याओं में परिवर्तन क्षेत्र - क्षेत्र देश देशांतर व समय - समयान्तर पर होते रहे हैं ! आधारभूत ऐतिहासिक मांपो के अनुसार भी पश्चिमी देशांतरों अर्थात पश्चिमी भू - धरा अर्थात ‘मीनदेश - पाकिस्तान’ व ‘मारवाड़’ प्रांगण में ‘मीणा’ , दक्षिण - पश्चिम भू - भाग अर्थात बागड़ व मेवाड़ देश संभाग में मेंणा, मध्य भू - भाग अर्थात मध्य व पूर्वी राजस्थान में ‘मीना’ व पूर्वी देशान्तर भू - धरा अर्थात मध्यदेश - मध्यप्रदेश के संभाग में ‘मैना’ आदि शब्द संज्ञायें अधिक प्रचलन में रही हे ! श्री रावत सारस्वजी के कुछ उन तथ्यों को दोहराना महत्त्वपूर्ण है, जिनमें कुछ तथ्य ऐतिहासिक प्रकरण-प्रमाण विचारधाराओं से परे हैं।

उदाहरणार्थः "चूँकि 'मीना' जाति राजस्थान में 'मीणा' कहकर पुकारी जाती है, अतः यह भी देखना होगा कि क्या 'मीन' का राजस्थानी रूपान्तरण 'मीण' हो सकता है।" ऐसा प्रतीत होता है कि सारस्वतजी 'मीणा' नाम संज्ञा को 'मीन-प्रजाति' की 'मीना' नाम संज्ञा से भी विभाजन दीवार की चेष्टा में रहे हों। यह तो सर्वज्ञात है कि राजस्थान में 'मीना' जनजाति ढूँढाड़, मत्स्य, मेवात, खैराड़ व हाड़ौती संभाग में 'मीना-मीणा-मैना' आदि नाम संज्ञाओं से सम्बोधित की जाती रही है और मारवाड़ या पश्चिमी राजस्थान में 'मीणा-मैणा- मैना' आदि नाम संज्ञाओं से अभिहित होती रही है। इसका तात्पर्य है कि देश-देशान्तर व समय- समयान्तर में हुए प्राकृतिक संज्ञा परिवर्तनों को विभाजन की रेखा बनाना आधारविहीन तर्क-वितर्क है। 'मीना-मीणा-मैणा-मैना' जनजाति की उत्पत्ति के संदर्भ में उनका लेखन संग्रह इस प्रकार हैं:

रावत सारस्वतजी ने 'मीणा इतिहास' में मीणा जनजाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न तर्क-वितों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: लोक विश्वास के अनुसार मीणा जाति की उत्पत्ति की अन्य कई कल्पनायें भी मिलती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार हैं:

1. जैन मतावलम्बियों के अनुसार भगवान् ऋषभदेव के सौ पुत्रों में से एक का नाम मत्स्यदेव था। इसी के नाम से मत्स्यदेश और उसमें बसने वाली जाति 'मीना' कहलाई।"

2मैणा-मयण शब्द का मूल मदन-कामदेव है और शारीरिक सौन्दर्य के कारण ये 'मयणा' कहलाने लगे। इस मान्यता के अनुसार ये यादव प्रद्युम्न के वंशधर माने जाते हैं।

3. श्रीमद्भागवत में 'मीना एकादशैवतु' तथा 'मीना एकादशाक्षितिम्' कहकर जिस वंश के राज्य का उल्लेख है वह आजकल की मीणा जाति का ही है। 4. अग्निपुराण में कश्यपजी को ब्याही गई उषा की पांच कन्याओं में से मीना, मैना, नाम की संतान मीना-मैना कहलाई।

5. स्कंदपुराण में भगवान् शिव को 'मीन', 'मीननाथ आदि कहा है, अतः शिव के भक्त लोग 'मीना' कहलाये।

6. शिवपुराण में दक्ष प्रजापति की 67 कन्याओं में से मैना, कन्या तथा कलावती का श्रापग्रस्त होकर मानवी रूप में अवतरित होना वर्णित है। इनमें से 'मैना' राजा हिमालय की रानी बनी, जिसके गर्भ से पार्वती तथा अन्य सौ पुत्र हुए, जो 'मैनाक कहलाये, इन्हीं 'मैनाक' राजकुमारों की संतति मैना-मीना कहलाई।'

उपर्युक्त सभी तथा अन्य अनेक कल्पनाओं का उल्लेख मुनि मगनसागर लिखित 'मीन पुराण भूमिका नामक पुस्तक में किया गया है। ये धारणायें अधिकांशतः परस्पर विरोधी होने के अतिरिक्त ऐतिहासिक अथवा अन्य संपुष्ट प्रमाणों से रहित होने के कारण निश्चयपूर्वक स्वीकार नहीं की जा सकती।" इस संदर्भ में विद्वान रावत सारस्वतजी की विचार-धारणाओं के प्रति एक निर्विवादित प्रश्न है कि प्रागैतिहासिक या पुरातात्विक या अधैतिहासिक खोजों से पूर्व, आर्यावर्त में इतिहास की नींव, मात्र पौराणिक वेद-पुराण, धार्मिक ग्रन्थ, स्मृति, संहिता, उपनिषद व जनश्रुतियों पर आधारित थी। प्राचीन जनपदों एवं गणराज्यों सम्बन्धी ऐतिहासिक जानकारी भी धार्मिक ग्रन्थों एवं उपनिषदों से ही प्राप्त की जा सकी है। सूर्य वंश और चन्द्र वंश की ऐतिहासिक जानकारी भी वेद और पुराणों में से ही संगृहीत की जा सकी हैं। वैदिक एवं पौराणिक कथनानुसार भी यह निर्विवादित रहा है कि मीना जनजाति 'मीन', 'मीनानाथ' अर्थात् 'शिव' की विशेष उपासक रही हैं। वैदिक ग्रन्थ 'शिवपुराण के अनुसार भी 'मैना' के गर्भ से 'पार्वती माता और सौ 'मैनाक' पुत्रों ने जन्म लिया और उनके पुत्रों का विवाह नाग कन्याओं से हुआ तथा उन सौ 'मैनाक' पुत्रों के वंशज 'मीना' या 'मैना' नाम संज्ञा से सुप्रसिद्ध हुये। इसी प्रकार अग्निपुराण के अनुसार 'मरीच' नन्दन कश्यप को ब्याही उषा की पाँच पुत्रियों में 'मीना और मैना भी थी, जिनके वंशज भी मातृ नाम संज्ञा से 'मीना' या 'मैना' कहलाये। 1'मत्स्यमहापुराण, तीसरा, चौथा, पाँचवां व छठा अध्याय पृष्ठ 7 से 20 2'ताजी नाग राजवंश के जागा बृजमोहनजी, ग्राम माँझरखेड़ली, त. अटरू, जिला बारां, की प्रचीन बहीपोथी लेखानुसार, नाग कन्या 'मैनावती, राजा हिमाचल को ब्याही थी, जिसकी कोख से जगत माता पार्वती' और 100 मैनाक पुत्रों ने जन्म लिया था. जिनसे अनेक मीना वंशों का उद्भव हुअ था, उनमें 'तेजराय मैनाक' का एक 'ताजि नाग राजवंश है।

मत्स्यप्रदेश 🚩 ( वर्तमान अलवर, भरतपुर व जयपुर का क्षेत्र )

मीनदेश🚩 ( वर्तमान पाकिस्तान )

मीणाराज🚩 ( पुरा भारतदेश)

mina /meena itihas

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